आर्यभट्ट की जीवनी | Aryabhatt Biography in Hindi

aryabhata kee jeevanee in Hindi

आर्यभट (476-550) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने दशगीतिका, आर्यभटीय और तंत्र ग्रंथो की रचना की| आर्यभट द्वारा रचित तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। लेकिन जानकारों के अनुसार उन्होने और एक ग्रंथ लिखा था- ‘आर्यभट सिद्धांत’। इस समय उसके केवल 34 श्लोक ही उपलब्ध हैं। उनके इस ग्रंथ का सातवे शतक में व्यापक उपयोग होता था। लेकिन इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती।

आर्यभट का जन्म-स्थान

आर्यभट का जन्म  476 अश्मक, महाराष्ट्र, भारत में हुआ था| आर्यभटीय ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। यद्यपि आर्यभट के जन्म के वर्ष का आर्यभटीय में स्पष्ट उल्लेख है, उनके जन्म के वास्तविक स्थान के बारे में विवाद है। एक ताजा अध्ययन के अनुसार आर्यभट, केरल के चाम्रवत्तम (10 उत्तर 51, 75 पूर्व 45) के निवासी थे। आर्यभट के जन्म को लेकर आज भी इतिहासकरो में मत्भ्दे है |

शून्य का आविष्कार

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भारतीय ‌गणितज्ञ वर्षों से ये दावा करते रहे हैं कि शून्य का अविष्कार भारत में किया गया था कहा जाता है की शून्य का आविष्कार भारत में पांचवीं शताब्दी के मध्य में शून्य का आविष्कार आर्यभट्ट जी ने किया था | शून्य का अविष्कारक कौन है ; इसको लेकर अभी भी बिवाद है, और  यह अभी तक पूर्ण रूप से स्पष्ट नही हो पाया है। पर भारतीय लोगों का मानना है कि शून्य की खोज भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने की थी, वहीं कुछ अमेरिकी गणितज्ञ यह मानते है कि एक अमेरिकी गणितज्ञ आमिर एक्जेल ने कंबोडिया में शून्य की खोज की थी। शून्य के अविष्कार को लेकर काफी तर्क दिए जाते है | जसे की आर्यभट्ट ने शून्य का अविष्कार किया था, लेकिन कुछ ग्याताओ के अनुसर शून्य शब्द बक्षाली पाण्डुलिपि ने हुआ था लेकिन अभी तक इसका कोई निश्चित काल नही पता चल पाया है, कहा जाता है की बक्षाली पाण्डुलिपि आर्यभट्ट काल से भी पहले का समय है | शून्य का आविष्कार किसने और कब किया यह आज तक अंधकार के गर्त में छुपा हुआ है, परंतु सम्पूर्ण विश्व में यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि शून्य का आविष्कार भारत में ही हुआ है।

पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना

prthvee ka apane aksh par ghoomana

आर्यभट्ट ने ही सबसे पहले येह बता दिया था की पृथ्वी अपने अक्ष पर गुमती है| पृथ्वी की बड़ी छाया जब चंद्रमा पर पड़ती है, तो चंद्र-ग्रहण होता है। और इसी प्रकार, चंद्र जब पृथ्वी और सूर्य के बीच आता है और वह सूर्य को ढक लेता है तब सूर्य-ग्रहण होता है। गणित की सहायता से हिसाब लगाकर हम पहले से ही जान सकते हैं कि पृथ्वी और सूर्य के बीच में ठीक किस समय चंद्र आयेगा और किस स्थान पर ऐसा सूर्य-ग्रहण दिखाई देगा। लेकिन इसके लिए पहले यह समझना होगा कि पृथ्वी स्थिर नहीं है। यह अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है और आकाश का तारामंडल स्थिर है।

पाई का मान

paee ka maan

प्राचीन भारत के महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ आर्यभट्ट ने ही सबसे पहले पाई के सिद्धांत को लागू किया था। आधुनिक युग में पाई का मान सबसे पहले 1706 में विलिया जोन्स ने सुझाया था। काफी लोग ये नहीं जानते हैं कि गणित के सबसे महत्वपूर्ण नियतांक यानी निर्धारक (Determinant) पाई π की खोज कहां हुई थी। पाई का मान लगभग 3.14159 के बराबर होता है।

बीजगणित

आर्यभट्‍ट प्राचीन समय के सबसे महान खगोलशास्त्रीयों और गणितज्ञों में से एक थे। विज्ञान और गणित के क्षेत्र में उनके कार्य आज भी वैज्ञानिकों को प्रेरणा देते हैं। आर्यभट्‍ट उन पहले व्यक्तियों में से थे जिन्होंने बीजगणित (एलजेबरा) का प्रयोग किया। उनकी प्रसिद्ध रचना ‘आर्यभटिया’ (गणित की पुस्तक) है |यह प्राचीन भारत की बहुचर्चित पुस्तकों में से एक है। इस पुस्तक में दी गयी ज्यादातर जानकारी खगोलशास्त्र और गोलीय त्रिकोणमिति से संबंध रखती है। ‘आर्यभटिया’ में अंकगणित, बीजगणित और त्रिकोणमिति के 33 नियम भी दिए गए हैं।

खगोल विज्ञान

खगोल बिज्ञान की खोज का स्राए आर्यभट को ही जाता है उन्होंने ने ही सबसे पहले इसकी खोज की थी| खगोल विज्ञान प्रणाली  को औदायक प्रणाली  भी कहा जाता है | खगोल विज्ञानी अथवा खगोल शास्त्री वे वैज्ञानिक अध्ययनकर्ता हैं जो आकाशीय पिण्डों, उनकी गतियों और अंतरिक्ष में मौजूद विविध प्रकार की चीजों की खोज और अध्ययन का कार्य करते हैं।

कृतियाँ

महान गणितज्ञ आर्यभट ने अपनी पुस्तक ‘आर्यभटीय’ में 120 सूत्र दिए | उन्होंने आर्यभटीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें वर्गमूल, घनमूल, समान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन है। खगोल-विज्ञान विषयक सिद्धान्त तथा इसके लिये यन्त्रों का भी निरूपण किया। आर्यभट ने अपने इस छोटे से ग्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती तथा पश्चाद्वर्ती देश के तथा विदेश के सिद्धान्तों के लिये भी क्रान्तिकारी अवधारणाएँ उपस्थित कीं।  उन्होंने आधुनिक विज्ञान के कई सूत्र पहले ही बता दिए थे. जेसे पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना, सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण की व्याख्या, पाई का सटीक मान, समयगणना, त्रिकोणमिति, ज्यामिति, बीजगणित आदि के कई सूत्र आधुनिक विज्ञान से कई वर्षों पहले हमें आर्यभट द्वारा रचित ‘आर्यभटीय’ में मिलते हैं.

आर्यभट का योगदान

भारतके इतिहास में जिसे ‘गुप्तकाल’ या ‘स्वर्णयुग’ के नाम से जाना जाता है, उस समय भारत ने साहित्य, कला और विज्ञान क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की। उस समय मगध स्थित नालन्दा विश्वविद्यालय ज्ञानदान का प्रमुख और प्रसिद्ध केंद्र था। देश विदेश से विद्यार्थी ज्ञानार्जन के लिए यहाँ आते थे। वहाँ खगोलशास्त्र के अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था। एक प्राचीन श्लोक के अनुसार आर्यभट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे।

निस्कर्सत्मक टिप्पणी

येह कहना सही होगा की आर्यभट्ट भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। उनका भारत और पुरे बिस्व पर बहुत बड़ा योगदान है | उन्होंने कई ग्रंथ लिखा और कई सूत्र दिए जिसके कारन आज हम चाँद पर जा सके और आज हम मैथ्स का बहुत आसानी से पर्यौग कर पा रहे है | आर्यभट्ट के कार्यों की जानकारी उनके द्वारा रचित ग्रंथों से मिलती है। इस बात पर कई मतभेद हो सकते है पर पर येह कहना सही होगा की आर्यभट्ट भारत के एक महान बिज्ञानिक,ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे।

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